उत्तराखंड की राजधानी देहरादून में इन दिनों 524 घरों पर बुलडोजर चलने का खतरा मंडरा रहा है। यहां रिस्पना नदी किनारे रिवर फ्रंट योजना की तैयारी है। इसके तहत नदी किनारे भवन चिह्नित किए गए हैं। ये भवन नगर निगम की जमीन के साथ ही मसूरी देहरादून विकास प्राधिकरण की जमीन पर हैं।
नगर निगम वर्ष 2016 के साथ से नदी किनारे बसी हुई बस्तियों को 30 जून तक हटाने के नोटिस भेज रहा है। इसका राजधानी देहरादून में विभिन्न राजनीतिक दलों के साथ ही सामाजिक संगठन कड़ा विरोध कर रहे हैं। अब एमडीजीए भी अपने क्षेत्र की बस्तियों को हटाने की तैयारी कर रहा है। विरोध राजपुर विधानसभा क्षेत्र के पूर्व विधायक राजकुमार के नेतृत्व में आज मलिन बस्तियों के लोगों के साथ ही कांग्रेसियों ने एमडीडीए पहुंचकर जोरदार प्रदर्शन किया।
बताया जा रहा है कि नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) की ओर से आगामी 30 जून तक अतिक्रमण हटाने के निर्देश दिए गए हैं। नगर निगम ने रिस्पना नदी के किनारे स्थित 27 बस्तियों में 524 अतिक्रमण चिह्नित किए थे। इनमें से ज्यादातर रिवरफ्रंट योजना की भूमि पर पाए गए। आज से एमडीडीए की ओर से भी नोटिस जारी किए जाने थे। नगर निगम की भूमि पर स्थित 89 कब्जों को हटाने के नोटिस पहले ही जारी किए जा चुके हैं।
एनजीटी के निर्देश पर नगर निगम ने काठबंगला बस्ती के निकट से मोथरोवाला तक करीब 13 किमी लंबाई पर रिस्पना के किनारे स्थित 27 मलिन बस्तियों में सर्वे किया है। जहां वर्ष 2016 के बाद किए गए 524 निर्माण को चिह्नित किया गया है।
मलिन बस्तियों के निवासियों को नोटिस जारी किये जाने के विरोध में कांग्रेसियों व बस्तीवासियों ने एमडीडीए कार्यालय पर प्रदर्शन करते हुए नोटिसों को वापस लिये जाने की मांग की। साथ ही एमडीडीए के उपाध्यक्ष को ज्ञापन सौंपकर ध्वस्तीकरण की कार्रवाई नहीं किए जाने की मांग की।
पूर्व विधायक राजकुमार के नेतृत्व में कांग्रेस कार्यकर्ता एमडीडीए कार्यालय पहंचे। वहां पर जमकर नारेबाजी की। बाद में एमडीडीए उपाध्यक्ष बंशीधर तिवारी को ज्ञापन सौंपकर वर्षों से रह रहे बस्ती के लोगों को बेघर ना करने की मांग की गई। ज्ञापन में कहा गया कि मलिन बस्तियों के निवासी कई वर्षों से रिस्पना नदी के किनारे अपने कच्चे पक्के मकान बनाकर निवास कर रहे है। उनके मकानों में पानी, बिजली की सुविधा है।
इन बस्तियों में पुश्ते, सड़क, नाली, स्कूल, पानी, सीवर लाईनें और सभी सरकारी सुविधायें उपलब्ध है। ज्ञापन में कहा गया कि इन बस्तियों में नगर निगम, पीडब्ल्यूडी, सिंचाई विभाग, एमडीडीए, जल निगम, विद्युत विभाग, पार्षद निधि, विधायक एवं सांसद निधि से भी अनेकों कार्य हो रखे हैं। फिर भी इनको अवैध माना जा रहा है। समाचार पत्रों के माध्यम से पता चला है कि एमडीडीए कुछ मलिन बस्तियों को हटाने की तैयारी कर रहा है, जो बिलकुल उचित नहीं है।